CBI की नियुक्ति में चीफ जस्टिस का क्या कामः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़

नई दिल्लीः उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के निदेशक की नियुक्ति में मुख्य न्यायाधीश (CJI) की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में CJI की भागीदारी संविधान के अनुरूप नहीं है। यह सरकार के अधिकारों को कमजोर करती है।

क्या ऐसा दुनिया में कहीं और हो रहा है?
धनखड़ ने कहा, ‘मुझे यह देखकर हैरानी होती है कि CBI निदेशक जैसे कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति में भारत के मुख्य न्यायाधीश भाग लेते हैं। कार्यकारी नियुक्ति कार्यपालिका के अलावा किसी और के द्वारा क्यों की जानी चाहिए? क्या यह संविधान के तहत हो सकता है? क्या ऐसा दुनिया में कहीं और हो रहा है?’

नकदी मिलने पर क्या बोले
नखड़ ने सोमवार को कहा कि उन्हें उम्मीद है कि नई दिल्ली में एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास से भारी मात्रा में नकदी मिलने के मामले की आपराधिक जांच शुरू की जाएगी। धनखड़ ने इस घटना की तुलना शेक्सपीयर के नाटक जूलियस सीजर के एक संदर्भ ‘इडस ऑफ मार्च’ से की, जिसे आने वाले संकट का प्रतीक माना जाता है। रोमन कलैंडर में इडस का अर्थ होता है, किसी महीने की बीच की तारीख। मार्च, मई, जुलाई और अक्टूबर में इडस 15 तारीख को पड़ता है। उपराष्ट्रपति ने इस घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि अब मुद्दा यह है कि यदि नकदी बरामद हुई थी तो शासन व्यवस्था को तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए थी और पहली प्रक्रिया यह होनी चाहिए थी कि इससे आपराधिक कृत्य के रूप में निपटा जाता, दोषी लोगों का पता लगाया जाता और उन्हें कठघरे में खड़ा किया जाता।

न्यायपालिका पर लोगों का बहुत भरोसा
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक धनखड़ ने यह भी कहा कि देश की न्यायपालिका पर लोगों का बहुत भरोसा और वे इसका सम्मान करते हैं। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘लोगों का न्यायपालिका पर जितना भरोसा है उतना किसी और संस्था पर नहीं है। अगर संस्था पर उनका भरोसा खत्म हो गया तो हम एक गंभीर स्थिति का सामना करेंगे। एक अरब 40 करोड़ लोगों का देश इससे पीड़ित होगा।’

हस्तक्षेप से व्यवस्था बिगड़ सकती है
उपराष्ट्रपति ने पूछा, ‘क्या दुनिया में कहीं और भी ऐसा हो रहा है? क्या यह हमारी संवैधानिक व्यवस्था के तहत हो सकता है? कार्यपालिका की नियुक्ति कार्यपालिका के अलावा किसी और द्वारा क्यों की जानी चाहिए?’ उन्होंने कहा कि यदि कोई एक संस्था (न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका) दूसरे के अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप करती है, तो इससे पूरी व्यवस्था बिगड़ सकती है।

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