भारतीय राग मन को छू कर मस्तिष्क की तरंगें भी बदल सकते है!
IIT मंडी में आयोजित हुआ 11वां दीक्षा समारोह में 60 स्टूडेंट्स को PHD की उपाधि

बीटेक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विद्यार्थी रहे उत्तर प्रदेश नोएडा के आदित्य सरकार को शैक्षणिक व अन्य गतिविधियों में प्रथम रहने पर राष्ट्रपति स्वर्ण पदक, आदित्य सरकार अमेरिका में एमटेक की पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी जगह पिता आशीष सरकार ने डिग्री व पदक प्राप्त किया।
मंडी (हिमांचल प्रदेश) : भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान (आइआइटी) मंडी के 11वें दीक्षा समारोह में 60 विद्यार्थियों को पीएचडी की उपाधि व 505 को बीटेक,एमटेक,एमए,एमएससी की डिग्री दी गई। बीटेक में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के विद्यार्थी रहे उत्तर प्रदेश के नोएडा के आदित्य सरकार को शैक्षणिक व अन्य गतिविधियों में प्रथम रहने पर राष्ट्रपति स्वर्ण पदक प्रदान किया गया।
इसके अलावा संस्थान के 22 अन्य विद्यार्थियों को पदक प्रदान किए गए। कार्यक्रम में परमाणु ऊर्जा विभाग के सचिव एवं परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष डा. अजीत कुमार मोहंती मुख्यअतिथि थे। आइआइटी के बोर्ड आफ गवर्नर्स के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) कंवल जीत सिंह ढिल्लों ने दीक्षा समोराह की अध्यक्षता की।
तनाव मुक्त, सीखने की प्रक्रिया और गुरुकुल की सीख को याद रखने का दिया मंत्र
डा. अजीत कुमार मोहंती ने विद्यार्थियों को तीन गुरु मंत्र दिए। पहला सीखने की प्रक्रिया,दूसरा तनाव रहित रहना और तीसरा गुरुकुल की परंपरा को हमेशा याद रखना। डा. मोहंती ने कहा कि स्नातक की पढ़ाई आसानी से नहीं होती है, लेकिन इस डिग्री को मिलने बाद अब अपने अगले लक्ष्य को ध्यान में रखें। जितना सीखेंगे उतना ही आप आगे बढ़ेंगे।
रिसर्च ने साबित किया कि “भारतीय शास्त्रीय संगीत” की आत्मिक ध्वनियां अब सिर्फ भावनाओं तक सीमित नहीं रहीं, बल्कि उन्होंने विज्ञान की प्रयोगशाला में भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के न्यूरोसाइंस अध्ययन ने यह सिद्ध किया है कि भारतीय राग न केवल मन को छूते हैं, बल्कि मस्तिष्क की गहराई में भी स्पष्ट और मापनीय बदलाव उत्पन्न करते हैं।
USA के फ्रंटियर्स इन ह्यूमन न्यूरोसाइंस में प्रकाशित इस शोध का नेतृत्व आईआईटी मंडी के निदेशक प्रो. लक्ष्मीधर बेहरा ने किया है। इसमें आईआईटी कानपुर के शोधार्थियों का भी सहयोग रहा। अध्ययन में आधुनिक ईईजी माइक्रोस्टेट विश्लेषण तकनीक का उपयोग कर 40 प्रतिभागियों के मस्तिष्क की प्रतिक्रिया को विश्लेषित किया गया।
यह तकनीक मस्तिष्क की बहुत ही सूक्ष्म और क्षणिक स्थितियों को रिकॉर्ड करती है, जिससे विज्ञानी यह समझ पाए कि कौन-से राग मस्तिष्क की किन गतिविधियों को सक्रिय या शांत करते हैं।
परिणाम चौंकाने वाले और प्रेरणादायक थे
राग दरबारी, जो अपने शांत और स्थिर प्रभाव के लिए जाना जाता है, ने ध्यान और एकाग्रता से जुड़ी मस्तिष्कीय स्थितियों को सक्रिय किया और मन के भटकाव को घटाया। वहीं, राग जोगिया, जो भावनात्मक गहराई लिए होता है, ने भावनात्मक नियंत्रण और आंतरिक संतुलन में उल्लेखनीय सुधार दिखाया।
प्रो. बेहरा ने कहा कि यह अत्यंत चमत्कारिक है कि भारतीय राग सदियों से जिस मानसिक स्थिरता की बात करते आए हैं, अब वह विज्ञान की कसौटी पर भी सिद्ध हो रहे हैं। इस शोध के प्रमुख लेखक डा. आशीष गुप्ता ने भी स्पष्ट किया कि परिवर्तन आकस्मिक नहीं थे, बल्कि विज्ञानिक रूप से दोहराए जा सकने योग्य थे। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि संगीत को मानसिक स्वास्थ्य के एक प्रभावशाली, गैर-दवा आधारित उपचार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण सुझाव भी दिए गए
परीक्षाओं, साक्षात्कार या उच्च स्तरीय बैठकों से पहले राग दरबारी सुनना एकाग्रता को बढ़ा सकता है। वहीं भावनात्मक संकट के समय राग जोगिया सुनना भावनाओं को संतुलन प्रदान कर सकता है। आईआईटी कानपुर के प्रो. ब्रजभूषण ने भी इस खोज को ऐतिहासिक बताया।
इससे संगीत आधारित मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के लिए सांस्कृतिक रूप से अनुकूल रणनीतियों का मार्ग प्रशस्त होगा। विशेष बात यह रही कि यही प्रयोग पश्चिमी प्रतिभागियों पर भी किया गया और परिणाम लगभग समान पाए गए। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय रागों की ध्वनि तरंगों का प्रभाव न केवल सांस्कृतिक है, बल्कि उनकी न्यूरोलाजिकल शक्ति सार्वभौमिक भी है।
यह शोध न केवल विज्ञान और संस्कृति के बीच की खाई को पाटता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि हमारी सांस्कृतिक जड़ों में मानसिक स्वास्थ्य के समाधान पहले से ही मौजूद हैं, सिर्फ हमें उन्हें समझने और अपनाने की आवश्यकता है।