योगी की सरकार पर 40 हजार करोड़ की बिजली घोटाले का आरोप
बिजली वितरण कंपनियों के निजीकरण को लेकर विवाद गहराया

लखनऊ : पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम की बैलेंस शीट बता रही है कि सरकारी विभागों पर 3 सालों के दौरान 4489 करोड़ रु. का बकाया है। वहीं, अतिरिक्त सब्सिडी के मद में भी सरकार द्धारा पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम को 8115 करोड़ रु. देना है। ऐसे में घाटे के नाम पर निजीकरण की बात करना गलत है।
राज्य उपभोक्ता परिषद ने इस खुलासे के साथ दावा किया है कि प्रदेश की बिजली कंपनियों का घाटा जहां 110 हजार करोड़ है वहीं, उपभोक्ताओं पर जो बकाया है वह 115 हजार करोड़ है। यदि बकाया वसूल ली तो बिजली कंपनियां फायदे में पहुंच जाएगी। यहां तक पता चला है कि बकाए पर भी बिजली कंपनियों ने लोन ले रखा है।
उप्र. राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश वर्मा का ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ सर प्लस है। ऐसे में बिजली दरों में 45 प्रतिशत की कमी होनी चाहिए। अवधेश वर्मा के मुताबिक निजीकरण की पूरी प्रक्रिया उद्योगपतियों को लाभ देने के लिए बनाई गई है। कानूनन विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 17 के तहत सबसे पहले राज्य सरकार व बिजली कंपनी को विद्युत नियामक आयोग से अनुमति लेनी चाहिए थी।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सर प्लस 33122 करोड़ रु. निकल रहा है। ऐसे में 45 प्रतिशत दरों में कमी होनी चाहिए। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम में लॉस रिडक्शन स्मार्ट प्रीपेड मीटर और कैपेक्स में कुल लगभग 15963 करोड़ खर्च हुआ इसके बावजूद भी निजीकरण की बात चल रही है।
उपभोक्ताओं को नहीं दिया मुआवजा
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा कि मुआवजा कानून लागू होने के बावजूद भी अभी तक मुआवजा किसी भी उपभोक्ता को नहीं दिया गया। जबकि वर्ष 2022-23 में 18372 वर्ष 2023 -24 में 51437 वर्ष 2024-25 में 28509 बिजली का कनेक्शन 30 दिन के बाद दिया गया। ऐसे में सभी को मुआवजा मिलना चाहिए था।
वाराणसी में बिजली टैरिफ पर जनसुनवाई के दौरान विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र. ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय रद्द करने की मांग की। वाराणसी में बिजली टैरिफ पर जनसुनवाई के दौरान विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उप्र. ने पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम एवं दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण का निर्णय रद्द करने की मांग की।
संघर्ष समिति के साथ उपभोक्ता परिषद और सभी श्रेणी के उपभोक्ताओं ने उप्र में विद्युत वितरण निगमों के निजीकरण को जन विरोधी बताते हुए निजीकरण का निर्णय वापस लेने की मांग की। शुक्रवार को बड़ी संख्या में पार्षदों और जन प्रतिनिधियों ने जनसुनवाई में पहुंचकर निजीकरण का विरोध किया।