उत्‍तराखंड में ऐसा गांव, जहां 62 साल से बना रहा निर्विरोध ग्राम प्रधान

  • ग्रामीणों का आपसी प्रेम लोकतंत्र के लिए मिसाल है
  • गांव में बिजली पानी सड़क जैसी मूलभूत सुविधाएं
  • लोग सरकार की योजनाओं का लाभ उठा रहे हैं

बागेश्वर (उत्‍तराखंड) : चुनाव में छल, बल, धन आदि से एक गांव काफी दूर है। यह गांव आजादी के बाद हुए पंचायत चुनाव से निर्विरोध प्रधान बना रहा है। गरुड़ तहसील के कज्युली गांव में 97 परिवार रहते हैं। 300 मतदाता हैं। 63 वर्ष से आठ निर्विरोध प्रधान बन गए हैं।

पहाड़ के कई ऐसे गांव 21 वीं सदी में बिजली, पानी, सड़क, संचार आदि व्यवस्थाओं को लेकर आए दिन आंदोलित रहते हैं। वहां पंचायत चुनाव से पहले विकास का खाका भी खीचा जाता है। लेकिन चुनाव में गांव का एका नहीं हो पता है। जीत-हार के बाद गुटबाजी चरम पर रहती है। जिसके कारण गांव का विकास तो दूर कई पात्रों को सरकारी मदद तक नहीं पहुंच पाती है। लेकिन गरुड़ तहसील का कज्युली गांव इन सबके झंझट से दूर है। यहां आजादी के बाद से निर्विरोध प्रधान चुने जा रहे हैं। जिसके कारण गांव सुविधाओं से भी संपन्न है।

समूह के रूप में करते हैं गांव के काम
निर्विरोध प्रधान से गांव में बिजली, पानी, सड़क, संचार आदि मूलभूत सुविधाएं हैं। सरकार की योजनाओं का भी लाभ ले रहे हैं। गांव के लोग सरकारी तथा गैर सरकारी संस्थाओं में कार्यरत हैं। होली के अलावा सामूहिक पूजा आदि भी साथ होती करते हैं।

अभी तक बने निर्विरोध प्रधान
अभी तक पदम सिंह, धाम सिंह, किशन सिंह, दिग्पाल सिंह, पुष्पा रावत, दिग्पाल सिंह, मुन्नी देवी, इंद्र सिंह भंडारी आदि निर्विरोध ग्राम प्रधान बने हैं। 1962 में गांव के प्रधान के लिए पहला चुनाव हुआ था। सभी कार्यकाल दो से तीन बार तक रहा है।

पंचायत चुनाव उम्मीदवार तथा वोटर के घनिष्ठ संबंध के कारण सबसे बड़ा चुनाव होता है। देश की सबसे आधारभूत संरचना ग्राम है। देश में क्या हो रहा है। नागरिक पर व्यवस्था का सीधा प्रभाव पंचायत के स्तर से पता चलता है। ग्राम प्रधान हमारी संवैधानिक व्यवस्था का आधार है। इस चुनाव में उम्मीदवार सीधे एक दूसरे के करीबी तथा पहचान के होते है। इसलिए उनके बीच चुनाव कठिन तथा जटिल होता है। इसको सहज करने के लिए निर्विरोध प्रधान चुना जाना उचित है। इस बार महिला सीट है। पुष्पा भंडारी को निर्विरोध चुना जाएगा। =इंद्र सिंह भंडारी, पूर्व प्रधान

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