नए मुख्यमंत्री पर सस्पेंस बरकरार

भाजपा के कई नेताओं का मानना है कि पार्टी दिल्ली के नए मुख्यमंत्री के नाम को लेकर सभी को चौंका सकती है. ऐसा हो सकता है कि पार्टी किसी ऐसे व्यक्ति को सीएम बनाए, जिसका नाम अभी तक चर्चा में न रहा हो.

दिल्ली की राजनीति में बुधवार का दिन ऐतिहासिक होने वाला है. 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में लौट रही है और अब सबसे बड़ा सवाल यह है कि राजधानी की कमान किसे सौंपी जाएगी. भाजपा विधायक दल की बैठक शाम को होनी है, जिसमें नए मुख्यमंत्री के नाम पर अंतिम फैसला लिया जाना है. पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि भाजपा इस बार भी चौंकाने वाला फैसला ले सकती है, जैसा कि उसने अन्य राज्यों में किया था.

भव्य शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी
राजधानी में भाजपा की वापसी का जश्न एक बड़े आयोजन के रूप में मनाया जाने वाला है. 20 फरवरी को ऐतिहासिक रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण समारोह आयोजित किया जाएगा, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री और कई अन्य गणमान्य लोग उपस्थित रहेंगे. पार्टी सूत्रों के अनुसार इस समारोह में 50,000 से अधिक लोगों को आमंत्रित किया गया है. इनमें भाजपा कार्यकर्ताओं के अलावा आरडब्ल्यूए, समाज के विभिन्न वर्गों के प्रतिनिधि और संत शामिल है. भाजपा सांसद योगेंद्र चंदोलिया ने कहा कि पार्टी चाहती है कि यह आयोजन आम जनता के बीच हो, इसलिए रामलीला मैदान को चुना गया. ‘दिल्ली के लोग 27 साल से इस पल का इंतजार कर रहे है और हम चाहते है कि वे इसका हिस्सा बनें’. उन्होंने कहा कि समारोह का समय पहले शाम 4:30 बजे तय किया गया था, लेकिन अब इसे दोपहर 12 बजे कर दिया गया है

मुख्यमंत्री पद के संभावित चेहरे
भाजपा के कई दिग्गज नेता दिल्ली की सत्ता संभालने की रेस में है. जिन नामों पर चर्चा हो रही है, उनमें प्रवेश वर्मा, विजेंद्र गुप्ता, सतीश उपाध्याय, पवन शर्मा, आशीष सूद, रेखा गुप्ता और शिखा राय शामिल है. इसके अलावा बवाना से विधायक रविंदर इंद्राज सिंह और मादीपुर से कैलाश गंगवाल के नाम भी सामने आ रहे है, लेकिन पार्टी के कई नेताओं का मानना है कि भाजपा नेतृत्व अंतिम क्षण में कोई नया चेहरा चुनकर सभी को चौंका सकता है.

राजनीतिक समीकरण और रणनीति
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि दिल्ली में भाजपा की वापसी कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है. राष्ट्रीय राजनीति में यह पार्टी की मजबूत स्थिति का संकेत है, साथ ही यह मोदी सरकार की नीतियों पर जनता की मुहर के रूप में देखा जा रहा है. दूसरी ओर, यह आम आदमी पार्टी (आप) के लिए एक बड़ा झटका है, जिसने पिछले एक दशक में दिल्ली में अपनी मजबूत पकड़ बनाई है. अब देखना यह है कि भाजपा का नया नेतृत्व दिल्ली की जनता की उम्मीदों पर कितना खरा उतरता है.

 

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