बांग्लादेश में रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक आवास पर भीड़ का हमला

यूनुस सरकार में बांग्लादेश भीड़ के हवाले! टैगोर के पूर्वजों की हवेली में भारी तोड़फोड़

ढाका: बांग्लादेश के सिराजगंज जिले के शाहजादपुर क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार विजेता साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर के पैतृक घर कचहरीबाड़ी में भीड़ ने तोड़फोड़ की है। रवींद्र कचहरीबारी पर मंगलवार को भीड़ ने हमला करते हुए इसको नुकसान पहुंचाया। भीड़ ने सभागार और विरासत स्थल के दूसरे हिस्सों को निशाना बनाया। इससे इमारत की खिड़कियों के शीशे, दरवाजे और फर्नीचर को नुकसान हुआ।

घटना के बाद पुरातत्व विभाग के अधिकारियों ने साइट को बंद करते हुए मामले की जांच के लिए पैनल का गठन कर दिया है। टैगोर के पूर्वजों की इस निशानी पर हमला ऐसे समय हुआ है, जब बांग्लादेश में भीड़ की हिंसा बढ़ रही है। खासतौर से ऐसे स्थलों को निशाना बनाया जा रहा है, जिनका भारत से संबंध रहा है। मोहम्मद यूनुस के सरकार में आने के बाद ये घटनाएं लगातार हो रही हैं।

स्थानीय मीडिया के मुताबिक, इस घटना की वजह आगंतुक और रवींद्र कचहरीबारी कर्मचारियों के बीच मोटरसाइकिल पार्किंग शुल्क को लेकर हुए विवाद बना। यहां आए कुछ लोगों में स्थानीय कर्मियों से विवाद हुआ और फिर इसने इसने बड़ा रूप ले लिया। भीड़ ने इस ऐतिहासिक इमारत में घुसकर तोड़फोड़ शुरू कर दी। इससे अफतातफरी का माहौल पैदा हो गया।

ऐतिहासिक स्थल पर हमले के सिलसिले में 50-60 व्यक्तियों के खिलाफ मामला दर्ज किया गया, जिसमें 10 नामजद किए गए हैं। बांग्लादेशी वेबसाइट न्यू एज की रिपोर्ट के अनुसार, 8 जून को शाहनवाज नाम का शख्स अपने परिवार के साथ कचहरीबारी गया था। मोटरसाइकिल पार्किंग शुल्क को लेकर उसकी कर्मचारी से बहस हो गई।

कर्मचारियों ने विवाद के बाद नवाज को कथित तौर पर एक कमरे में बंद कर दिया गया और उसे पीटा। घटना पर नाराजगी जताते हुए स्थानीय लोगों ने मंगलवार को मानव श्रृंखला बनाकर विरोध प्रदर्शन किया। इसी दौरान कुछ लोगों ने रवींद्र कचहरीबारी पर धावा बोल दिया। भीड़ ने हवेली के सभागार में तोड़फोड़ की और खिड़कियों के शीशे और फर्नीचर तोड़ दिए।

रवींद्र कचहरीबारी का शाब्दिक अर्थ ‘टैगोर का एस्टेट ऑफिस होम’ है। यह रवींद्रनाथ टैगोर के पुरखों की जगह थी। इसी जगह से उनके परिवार ने सिराजगंज के शाहजादपुर उपजिला में अपनी संपत्ति की देखरेख की थी। अब इस हवेली को एक स्मारक संग्रहालय बना दिया गया है। रवींद्रनाथ टैगोर के पिता ने इस हवेली को खरीदा था। टेगौर इस इस हवेली में कवि कई बार आए और अपने कई नाटकों के कुछ हिस्सों को यहां बैठकर लिखा।

Related Articles

Back to top button