हिंदी विरोध पर सरकार ने क्या कहा?

मुंबई : महाराष्ट्र में एक बार फिर हिंदी बनाम मराठी भाषा को लेकर सियासत गरमा गई है। स्कूलों में हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर जारी सरकारी आदेश को राज ठाकरे की पार्टी मनसे ने खुली चुनौती दी है। मुंबई से लेकर ठाणे और नासिक तक स्कूलों में जाकर हिंदी की किताबें फाड़ी गईं, जलाई गईं, और प्रिंसिपलों को चेतावनी भरे पत्र थमाए जा रहे हैं। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीधे सरकार को ललकारा और कहा है कि हिंदी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है, इसे थोपने की कोशिश ना की जाए। उन्होंने आरोप लगाया कि यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति के नाम पर केंद्र और राज्य की मिलीभगत है, जो IAS लॉबी के दबाव का नतीजा है।

राज ठाकरे ने दी धमकी
महाराष्ट्र में स्कूली बच्चों को स्कूल में हिंदी पढ़ाए जाने का विवाद फिर उठा है। मनसे प्रमुख राज ठाकरे ने बकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपनी भाषा में सरकार को धमकी देते हुए कहा कि देखते है कि स्कूल छात्रों को हिंदी कैसे पढ़ाते हैं। इसके बाद से अलग-अलग स्कूलों में जाकर मनसे कार्यकर्ता प्रिंसिपल को पत्र दे रहे है, तो कहीं-कहीं हिंदी की किताब को भी जलाया और फाड़ा गया है।

क्या है सरकार का फैसला?
महाराष्ट्र में स्कूलों में हिंदी भाषा पढ़ाने को लेकर अनिवार्यता शब्द हटाया गया है लेकिन मराठी और अंग्रेजी के बाद तीसरी भाषा के तौर पर पढ़ाया जाएगा यह बात राज्य सरकार के नए GR से साफ हुआ है। कक्षा 1 से 5 तक अब तीसरे भाषा के रूप में हिंदी पढ़ाने के संबंध में अनिवार्य शब्द को वापस ले लिया गया है, लेकिन सामान्य रूप से हिंदी को तीसरे भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। स्कूल शिक्षा विभाग का नया सरकारी निर्णय जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि कक्षा एक से त्रिभाषा फॉर्मूला अपनाया जाएगा। यदि कक्षा में 20 से अधिक छात्र हिंदी के बजाय अन्य भाषा सीखना चाहते हैं तो उस भाषा के शिक्षक उपलब्ध कराएंगे या उस भाषा को ऑनलाइन पढ़ाया जाएगा।

राज ठाकरे ने क्या कहा?
अब सरकार के इस फैसले के बाद मनसे ने आक्रमक भूमिका अपनाई है। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के प्रमुख राज ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार ने जो पहली से पांचवीं तक हिंदी के सख्ती का निर्णय लिया है, 17 जून को मैंने पत्र लिखा था कि ऐसा ना करें। हिंदी कोई राष्ट्र भाषा नहीं है। आज मैं राज्य के सभी स्कूलों के प्रिंसिपल को पत्र भेज रहा हूं। मुझे सीएम ने कहा था कि हम हिंदी अनिवार्यता का फैसला वापस ले रहे हैं, जिसके चलते मैंने 5 दिन पहले यह पत्र लिखा था जो अब मैं स्कूल के प्रिंसिपल को भेज रहा हूं।’ उन्होंने कहा कि हिंदी सिर्फ एक राज्य भाषा है राष्ट्र की नहीं है। नए बच्चों को यह सब ना सिखाएं। उसे जो भाषा सिखनी है, बड़े होकर समझ जाएगा। IAS लॉबी का दबाव है क्या? तो यहां तीसरी भाषा का दबाव क्यों है?”

राज ठाकरे के बयान के बाद जगह जगह महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कार्यकर्ता और पद अधिकारी स्कूलों में पहुंचकर स्कूल के प्राध्यापक से मिलकर उन्हें पत्र दे रहे है । लेकिन मनसे कार्यकर्ता इतने पर भी नहीं रुके हैं बल्कि उनकी तरफ से बाकायदा दुकानों से हिंदी की किताब खरीद कर फाड़ा और जलाया गया है। कहीं-कहीं तो किताब को फाड़कर हवा में उड़ा दिया गया है।

शिक्षा मंत्री दादा भूसे ने दी सफाई
इस पूरे विवाद पर राज्य के शिक्षा मंत्री दादा भूसे ने सफाई भी दी है । शिक्षा मंत्री ने कहा कि, मेरा आपसे एक निवेदन है कि नए सरकारी निर्णय में अनिवार्य शब्द कहां है। सबसे पहले तो सभी माध्यम के स्कूलों में मराठी अनिवार्य है। चाहे अंग्रेजी हो या अन्य माध्यम के स्कूल, यह अनिवार्य है। पिछले कुछ सालों से कक्षा 5 से हिंदी एक विषय है, कुछ भाषा विद्यालय हैं, उनकी भाषा मराठी है और तीसरी भाषा हिंदी है, जो कुछ सालों से पढ़ाई जा रही है। कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों को जो तीसरी भाषा में रुचि रखते हैं, उन्हें एक तीसरी भाषा प्रदान करने का निर्णय लिया गया है।

कांग्रेस क्या बोली?
अब इस मुद्दे को लेकर राजनीति भी शुरू हो गई है। कांग्रेस भी इस मामले में कूद गई है। राज्य सरकार को घेरते हुए कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष हर्षवर्धन सपकाल ने कहा कि, त्रिभाषा का फॉर्मूला नेहरू जी ने लागू किया था। हर मातृ भाषा का संरक्षण होना चाहिए। अगर हिंदी को सख्ती से लाद रहे हैं तो यह इलॉजिकल है। मराठी सिर्फ एक भाषा नहीं है बल्कि संस्कृति है। यह एजेंडा RSS का है। अनिवार्य शब्द निकलकर छल करने की कोशिश की गई है।

मुख्यमंत्री फडणवीस ने क्या कहा?
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि “हम सब लोग अंग्रेजी का पुरस्कार करते हैं और भारतीय भाषाओं का तिरस्कार करते हैं, ये सही नहीं है। मैंने राज ठाकरे से बात की है, उन्होंने कहा कि केवल दो भाषाएं होनी चाहिए और तीसरी भाषा न थोपें। मैंने उनसे कहा कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति में उचित विचार-विमर्श के साथ पूरे देश में 3 भाषा नीति लाई है। एनईपी पूरे देश के लिए है और महाराष्ट्र दो भाषा नीति नहीं अपना सकता। तमिलनाडु 3 भाषा नीति के खिलाफ अदालत गया था, जिसे अदालत ने भी स्वीकार नहीं किया। अपनी क्षेत्रीय भाषा सीखते समय, यदि कोई छात्र एक अतिरिक्त भाषा सीखता है, तो इसमें क्या गलत है? अतिरिक्त भाषा उनके ज्ञान को बढ़ाने में मदद करेगी। विशेषज्ञों के साथ व्यापक चर्चा के बाद एनईपी लाया गया था। हमने नई जीआर में तीसरी भाषा के रूप में हिंदी भाषा को अनिवार्य करने की शर्त को हटा दिया है। अब आप किसी भी भारतीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में चुन सकेंगे। 3 भाषा नीति एनईपी के अनुसार है। यदि किसी विशेष भारतीय भाषा को सीखने के लिए लगभग 20 छात्र उपलब्ध हैं, तो शिक्षक उपलब्ध कराया जाएगा या इसे ऑनलाइन भी पढ़ाया जा सकता है। मैं केवल एक बात कहना चाहता हूं कि हम सभी अंग्रेजी भाषा की प्रशंसा करते हैं और भारतीय भाषाओं का अनादर करते हैं, यह सही नहीं है। भारतीय भाषाएं अंग्रेजी से कहीं बेहतर हैं।

यूपी में तीसरी भाषा कौन सी सिखाएंगे?- राज ठाकरे
राज ठाकरे ने जो बड़ा मुद्दा उठाया है उस पर सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया है। राज ठाकरे ने सवाल किया है कि यूपी में तीसरी कौन सी भाषा सिखाएंगे? राज ठाकरे ने कहा- ”उत्तर प्रदेश में तीसरी भाषा कौन सी सिखाएंगे? शिक्षा मंत्री कह रहे हैं, यह ऑप्शनल भाषा है तो छठी क्लास से रखो ना पहली से क्यों करना है। यह तो राज्य की भाषा है, तो यह भाषा क्यों थोप रहे हैं? यूपी, बिहार और एमपी में तीसरी भाषा क्या मराठी सिखाएंगे? गुजरात में भी हिंदी जरूरी नहीं है।

भले ही राज्य सरकार ने स्पष्ट कर दिया हो कि हिंदी अनिवार्य नहीं है, लेकिन मनसे का विरोध थमता नहीं दिख रहा। राज ठाकरे की यह नई भाषा राजनीति क्या आगामी BMC चुनावों की रणनीति का हिस्सा है, यह देखने वाली बात होगी। स्कूल खुल चुके हैं, किताबें खरीदी जा चुकी हैं, लेकिन अब बच्चों की पढ़ाई के बीच में भाषा की सियासत फिर एक बार आ खड़ी हुई है।

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