यूपी में 8 जिलों के छात्रों को मिलेगा यात्रा भत्ता
बुंदेलखंड-सोनभद्र जैसे दूर-दराज इलाकों के छात्रों पर योगी सरकार मेहरबान

लखनऊ : बुंदेलखंड क्षेत्र और सोनभद्र जिले के दूरदराज क्षेत्रों में शिक्षा का रास्ता अब आसान होने जा रहा है। प्रदेश सरकार ने माध्यमिक शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा निर्णय लेते हुए उन छात्र-छात्राओं के लिए परिवहन भत्ता देने की योजना लागू की है, जो अपने विद्यालय तक पहुँचने के लिए प्रतिदिन पांच किलोमीटर या उससे अधिक की दूरी तय करते हैं। इस योजना के अंतर्गत पात्र छात्रों को प्रति वर्ष 6000 रुपये का परिवहन भत्ता मिलेगा, जिससे उन्हें स्कूल आने-जाने में होने वाली आर्थिक कठिनाइयों से राहत मिलेगी।
सूत्रों के अनुसार, मंत्रालय ने योजना के क्रियान्वयन के लिए आवश्यक बजट स्वीकृत कर दिया है, जिससे 2025-26 शैक्षणिक सत्र से ही छात्रों को लाभ मिलना शुरू हो जाएगा। शासन स्तर पर जिलों को निर्देशित किया गया है कि वे पात्र छात्रों की सूची तैयार कर समयबद्ध रूप से भत्ते का वितरण सुनिश्चित करें। इस कार्य में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन और आधार सत्यापन की प्रक्रिया अपनाई जाएगी।
यह योजना बुंदेलखंड के सात जिलों, जालौन, झांसी, हमीरपुर, ललितपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट और पूर्वांचल के सोनभद्र जिले में लागू की गई है। ये सभी क्षेत्र भौगोलिक और संसाधन की दृष्टि से प्रदेश के अन्य क्षेत्रों की तुलना में पिछड़े माने जाते हैं, जहां विद्यालयों की दूरी छात्रों के स्कूल छोड़ने का एक प्रमुख कारण रही है।
शिक्षा मंत्रालय द्वारा जारी इस योजना का उद्देश्य ग्रामीण और वनवासी क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच बढ़ाना, छात्र संख्या में गिरावट को रोकना और विशेष रूप से किशोरियों की स्कूल में निरंतरता बनाए रखना है। इसके तहत: माध्यमिक विद्यालयों (9वीं से 12वीं) में पढ़ने वाले सभी छात्र-छात्राओं को लाभ मिलेगा, यदि वे विद्यालय से 5 किलोमीटर से अधिक दूरी पर निवास करते हैं। पीएम-श्री विद्यालयों (प्रधानमंत्री स्कूल फॉर राइजिंग इंडिया) में यह भत्ता केवल छात्राओं को दिया जाएगा, जिससे बालिकाओं को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहन मिल सके।
बुंदेलखंड और सोनभद्र जैसे क्षेत्रों में राज्य के अन्य हिस्सों की तुलना में माध्यमिक विद्यालयों की संख्या बेहद कम है। कई गांवों में आज भी बच्चों को विद्यालय पहुंचने के लिए लंबी पैदल दूरी तय करनी पड़ती है। शिक्षा मंत्रालय के मानकों के अनुसार, हर 5 किलोमीटर के दायरे में एक राजकीय माध्यमिक विद्यालय होना चाहिए, लेकिन इन जिलों में यह व्यवस्था पूरी तरह लागू नहीं हो सकी है। परिणामस्वरूप कई होनहार छात्र-छात्राएं केवल आवागमन की असुविधा या आर्थिक समस्याओं के कारण विद्यालय छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।