पश्चिम बंगाल सरकार ने 250 करोड़ से ‘दीघा में बनवाया भव्य जगन्नाथ मंदिर’
संविधान के के अनुसार सरकारी धन से नहीं इन सकता धार्मिक स्थल

कोलकाता (पश्चिम बंगाल) : ममता बनर्जी ने कहा कि दीघा स्थित मंदिर जो 350 किलोमीटर दूर पुरी में स्थित 12 वीं सदी के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति है जो भारत का गौरव है. दीघा मंदिर में जगन्नाथ मंदिर की तरह भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की प्राचीन मूर्तियों की प्रतिकृतियां हैं.
बंगाल के शांत और समुद्र तटीय शहर दीघा में ममता बनर्जी ने 22 एकड़ में 250 करोड़ रुपए की लागत से पांच सालों में भव्य जगन्नाथ मंदिर बनवाया है. ये मंदिर आज से जनता के लिए खोल दिया जाएगा. मंदिर पश्चिम बंगाल हाउसिंग इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (HIDCO) ने बनवाया है. बेशक ये मंदिर बहुत खूबसूरत और भव्य है.
लेकिन विपक्ष आरोप लगा रहा है कि हिंदुओं की राजनीति करने के लिए ममता ने ये मंदिर बनवाया है. लेकिन सरकार खुद अपना पैसा खर्च करके कोई धार्मिक स्थान नहीं बनवा सकती. जानते हैं कि इस मामले में संविधान क्या कहता है.
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 27 (Article 27) साफ कहता है कि जनता के कर से मिले पैसे से कोई धार्मिक स्थान नहीं बनाया जा सकता. हालांकि इसको लेकर पहले भी विवाद हो चुका है. क्योंकि कई बार सरकारों पर आरोप लगता रहा है कि उन्होंने जनता के टैक्स के पैसे को धार्मिक स्थानों पर लगवा दिया. क्या कहता हैं संविधान और इस बारे में क्या विवाद होता रहा है. इसे जानने से पहले दीघा में बने इस भव्य मंदिर के बारे में जान लेते हैं और दीघा शहर के बारे में भी.
मंदिर के निर्माण का खर्च किसने दिया?
– ममता बनर्जी ने साल 2019 में इस मंदिर की योजना बनाई थी. तब इसकी अनुमानित लागत करीब 143 करोड़ रुपये आंकी गई थी. कोविड महामारी की वजह से इसमें देरी हुई. साल 2022 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ. करीब 22 एकड़ इलाके में बने इस मंदिर पर करीब 250 करोड़ रुपए की लागत आई है. पूरी रकम सरकारी खजाने से खर्च की गई है. ममता बनर्जी का कहना है कि चूंकि देश में भक्ति आंदोलन की शुरुआत की बंगाल में हुई, इसलिए यहां पर जगन्नाथ मंदिर बनना जरूरी था.
मंदिर की खासियतें क्या हैं?
– ये मंदिर उसी शैली में बनाया गया है, जिसमें भुवनेश्वर पुरी का जगन्नाथ मंदिर बना है. जो देश के प्रसिद्ध मंदिरों में है. मंदिर के निर्माण में राजस्थान के लाल पत्थर, यानी सैंडस्टोन का इस्तेमाल किया गया है. मंदिर के फर्श पर वियतनाम से आयातित मार्बल का इस्तेमाल किया गया है. कलिंग स्थापत्य शैली से बने इस मंदिर के शिखर की ऊंचाई 65 मीटर है. इसके निर्माण के लिए 2,000 से ज्यादा कारीगरों ने तीन साल तक काम किया है. इनमें से करीब 800 कारीगरों को राजस्थान से बुलाया गया था.
मंदिर में बने तीन मंडपों की क्षमता करीब दो, चार और छह हजार लोगों की है. वहां धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. मंदिर परिसर में श्रद्धालुओं के रहने और आराम करने की जगह के अलावा दमकल स्टेशन और पुलिस चौकी भी होगी.
विपक्ष इस मंदिर को लेकर ममता पर क्या आरोप लगा रहा है?
– आमतौर पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि ममता ये सब अब हिंदुओं को खुश करने के लिए कर रही हैं. ये केवल राजनीति है. कई लोग इस मंदिर निर्माण को ममता बनर्जी के लिए बीजेपी के उग्र हिंदुत्व के मुकाबले का हथियार बता रहे हैं. बीजेपी ने कहा कि राज्य सरकार सार्वजनिक रकम का इस्तेमाल किसी धार्मिक संस्थान के निर्माण के लिए नहीं कर सकती. कांग्रेस और सीपीएम ने भी इसके लिए सरकार की खिंचाई की है.