हो जाइए सावधान: फेफड़ों के कैंसर की वजह सिर्फ धूम्रपान नहीं?
वायु प्रदूषण और अन्य कारणों से फेफड़ों के कैंसर का खतरा

रिपोर्ट : कैंसर का खतरा दुनियाभर में तेजी से बढ़ता जा रहा है, केवल वयस्क या बुजुर्ग ही नहीं अब बच्चे भी इसका शिकार होते जा रहे हैं। हाल के वर्षों में फेफड़ों के कैंसर के मामलों में तेजी से वृद्धि रिपोर्ट की गई है। पुरुषों में इस कैंसर का खतरा और भी ज्यादा देखा जा रहा है।
आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में दुनियाभर में फेफड़ों के कैंसर के 25 लाख नए मामले सामने आए और इससे 18 लाख से अधिक लोगों की मौत हो गई। तंबाकू-धूम्रपान इसका प्रमुख जोखिम कारक हैं, जो लगभग 85% फेफड़ों के कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
हालांकि फेफड़ों के कैंसर से संबंधित एक हालिया रिपोर्ट में कुछ नई और चिंता बढ़ाने वाली बातें सामने आई हैं। विशेषज्ञों की टीम ने कहा है कि सिर्फ धूम्रपान ही इस कैंसर के बढ़ते मामलों के लिए जिम्मेदार नहीं है, बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसके अलावा अध्ययनों में इस कैंसर के लिए कई अन्य जोखिम कारकों को लेकर भी सावधान किया गया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन डिएगो और नेशनल कैंसर इंस्टिट्यूट (एनसीआई) द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया है कि नॉन-स्मोकर्स में भी फेफड़ों के कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका मतलब है कि अब लंग्स कैंसर के मामले उन लोगों में भी देखे जा रहे हैं जो स्मोकिंग नहीं करते हैं। जब इसके पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए टीम ने अध्ययन किया तो पता चला कि इसका सीधा संबंध वायु प्रदूषण और पर्यावरणीय कारकों से जुड़ा हो सकता है।
नेचर जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के निष्कर्ष वैश्विक स्वास्थ्य नीति और शहरी नियोजन के लिए चेतावनी की घंटी की तरह हैं। वैज्ञानिकों ने बताया अब सिर्फ धूम्रपान ही नहीं, वायु प्रदूषण और कुछ पारंपरिक हर्बल दवाएं भी इंसानों के डीएनए को इतना नुकसान पहुंचा रही हैं कि फेफड़ों में ट्यूमर बनना शुरू हो जाता है।
जिन लोगों ने कभी सिगरेट नहीं छुई, उनके फेफड़ों में भी ऐसे म्यूटेशन पाए जा रहे हैं, जिनसे कैंसर का खतरा हो सकता है। खास बात यह है कि प्रदूषित वातावरण में रहने वाले लोगों में यह म्यूटेशन अधिक मात्रा में मिले हैं। म्यूटेशन से तात्पर्य है डीएनए अनुक्रम (जेनेटिक कोड) में होने वाला स्थायी परिवर्तन, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देने वाला हो सकता है।
शोध में सामने आया कि ताइवान में पारंपरिक चीनी औषधियों में इस्तेमाल होने वाला एरिस्टोलोचिक एसिड भी फेफड़ों के कैंसर से जुड़ा हो सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि इन औषधियों का धुआं सांस के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंचता है और डीएनए को नुकसान पहुंचाता है।
अध्ययन की ये रिपोर्ट भारत के लिए विशेष रूप से चिंताजनक है, जहां बढ़ता वायु प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय रहा है। यहां पर लोग जानलेवा प्रदूषण में सांस लेने को मजबूर हैं जिससे भविष्य में कैंसर का खतरा काफी बढ़ सकता है। इसी से संबंधित एक अन्य हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों की टीम ने चिंता जताई है कि धूम्रपान और वायु प्रदूषण के अलावा माइक्रोप्लास्टिक भी फेफड़ों के कैंसर का जोखिम बढ़ाता जा रहा है।
हैजर्डस मैटेरियल्स में प्रकाशित इस अध्ययन की रिपोर्ट में ऑस्ट्रिया स्थित मेडिकल यूनिवर्सिटी ऑफ वियना के शोधकर्ताओं ने बताया कि माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक फेफड़ों की कोशिकाओं में घातक परिवर्तन ला सकते हैं जो कैंसर के विकास से जुड़े हैं। बढ़ते वायु प्रदूषण के साथ बढ़ता प्लास्टिक कचरा दोनों कैंसर के खतरे को बढ़ाता जा रहा है, जिसपर तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है।