जब पाकिस्तान पर कार्यवाही करेगा भारत तो ……..
सऊदी, कतर और तुर्की की की क्या होगी भारत-पाक नीति

विचार:- पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव चरम पर है. भारत ने पाकिस्तान पर आतंकवाद को समर्थन देने का आरोप लगाते हुए कड़े कदम उठाए हैं, जिसमें सिंधु जल संधि का निलंबन, पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करना और राजनयिक संबंधों में कटौती शामिल है. पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए शिमला समझौते को रद्द करने की धमकी दी है. ऐसे में एक सवाल ये भी उठ रहा है कि इस स्थिति में मुस्लिम देशों का रुख किधर होगा. क्योंकि कहीं न कहीं उनकी भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है.
सऊदी अरब, यूएई, इंडोनेशिया और मिस्र जैसे देश भारत के आतंकवाद के खिलाफ रुख को न केवल जायज मानते हैं बल्कि इसे वैश्विक सुरक्षा के लिए जरूरी भी मानते हैं. इन देशों का समर्थन केवल कूटनीतिक नहीं बल्कि रणनीतिक और आर्थिक हितों से भी जुड़ा है. आइए जानते है कि इन देशों का कौन सा हित भारत से जुड़ा है.
यूएई-
यूएई और भारत के संबंध पिछले एक दशक में ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंचे हैं. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 85 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. यूएई भारत का तीसरा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है और भारत यूएई का दूसरा सबसे बड़ा. इसके अलावा, यूएई में बड़ी संख्या में भारतीय कामगार हैं, जिनके रेमिटेंस से दोनों देशों को फायदा होता आया है. ऐसे में यूएई किसी भी ऐसे पक्ष के साथ खड़ा नहीं हो सकता जो भारत की सुरक्षा के खिलाफ हो.
इंडोनेशिया-
इंडोनेशिया और इजिप्ट भी भारत के साथ कई क्षेत्रों में रणनीतिक भागीदारी को बढ़ावा दे रहे हैं. इंडोनेशिया के साथ भारत समुद्री सुरक्षा, पर्यटन और फूड प्रोसेसिंग में सहयोग कर रहा है. वहीं मिस्र के साथ हाल ही में रक्षा और शिक्षा में नए समझौते हुए हैं. इन देशों के लिए भारत न केवल एक बड़ा बाज़ार है, बल्कि एक स्थिर और भरोसेमंद साझेदार भी है.
सऊदी अरब-
सऊदी अरब और भारत के बीच ऊर्जा सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है. भारत, सऊदी अरब का प्रमुख कच्चा तेल आयातक है, वहीं सऊदी अरब भारत में इंफ्रास्ट्रक्चर और रिन्यूएबल एनर्जी में निवेश कर रहा है. क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की ‘विजन 2030’ में भारत एक अहम साझेदार है. यही कारण है कि सऊदी अरब भारत के खिलाफ किसी भी आतंकी गतिविधि को खुलकर नकारता है.
तुर्की-
तुर्की जैसे देश न्यूट्रल रहने की कोशिश में हो सकते हैं. हालांकि, तुर्की पारंपरिक रूप से पाकिस्तान का समर्थक रहा है, लेकिन हाल के सालों में भारत के साथ व्यापार और पर्यटन में बढ़त के कारण वह सीधे टकराव से बचना चाहेगा. तुर्की की अर्थव्यवस्था पहले से ही दबाव में है और किसी पक्ष विशेष के साथ खुलकर खड़ा होना उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर असहज कर सकता है.
कतर-
कतर की भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. भारत में बड़ी संख्या में कतर में काम करने वाले प्रवासी भारतीय हैं और दोनों देशों के बीच गैस और ऊर्जा के क्षेत्र में अहम समझौते हैं. इसके अलावा, कतर अपनी वैश्विक मध्यस्थ की भूमिका को बनाए रखना चाहता है, ऐसे में किसी एक पक्ष को खुलकर समर्थन देना उसकी कूटनीतिक स्थिति को कमजोर कर सकता है. इसलिए कतर जैसी ताकतें इस संकट में संतुलन साधने की नीति पर चल सकती हैं.
अफगानिस्तान-
अफगानिस्तान और पाकिस्तान के संबंध लंबे समय से तनावपूर्ण रहे हैं. भारत ने अफगानिस्तान में विकास परियोजनाओं में निवेश किया है, जिससे दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ा है. वहीं, अफगानिस्तान की हर मुश्किल घड़ी में भारत उसके साथ खड़ा रहा है. पाकिस्तान से भी उसके संबंध ठीक नहीं है. चीन के निवेश को बर्बाद करने का ठीकर पाकिस्तान हमेशा से अफ्गानिस्तान के सिर फोड़ता आया है. ऐसे में, माना जा रहा है कि अफगानिस्तान का रुख भारत की ओर ही रहेगा.
बांग्लादेश-
बांग्लादेश न्यूट्रल रह सकता है. इसके कई कारण हैं. इन दिनों वहां अंतरिम सरकार की सत्ता है. इसके मुखिया मो. यूनुस लगातार भारत के विरोध में बोल रहे हैं. लेकिन बांग्लादेश इतना बड़ा नहीं है कि वो इस मामले में भारत का विरोध कर सके या पाकिस्तान का सपोर्ट कर सके. इसीलिए बांग्लादेश न्यूट्रल की भूमिका रह सकता है.
पाक के पक्ष में कौन?
अब तक किसी भी देश ने पाकिस्तान को खुला समर्थन नहीं दिया है. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने आतंकवाद के खिलाफ भारत के कदमों को समझा है और पाकिस्तान से आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है. यह पाकिस्तान की कूटनीतिक स्थिति को कमजोर करता है. इस बार भारत ने आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक समर्थन जुटाने में सफलता पाई है. अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, रूस और जापान जैसे देशों ने भारत के रुख का समर्थन किया है.